सीबीएसई के पाठ्यक्रम में हो रहा बदलाव .
भोपाल. मंगल भारत। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जहां पर बच्चों को पढ़ाना अभिभावकों को बहुत भारी पड़ रहा है। इसकी वजह है निजी स्कूलों के प्रबंधन का रसूख। वे सरकार से लेकर शासन प्रशासन तक की नहीं सुनते हैं। यही वजह है कि नए सत्र की किताबों को खरीदवाने के बाद एक बार फिर से अभिभावकों को नए सिरे किताबें खरीदनी होंगी। दरअसल, सीबीएसई प्राइमरी और माध्यमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम बदलने जा रहा है। उधर, निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह ििनजी प्रकाशकों की किताबों से पढ़ाई कराई जा रही है। इस मामले में 18 मार्च को भोपाल संभाग के जॉइंट डायरेक्टर अरविंद चौरगड़े ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे कि सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही पढ़ाई जाएं। इसके बाद 29 मार्च को को स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदयप्रताप सिंह ने गाडरवाड़ा में भी यही बयान दिया था। इसके बाद भी इस निर्देश का पालन पूरी तरह से नहीं हुआ है।इस मामले में अगर भोपाल के ही पांच सीबीएसई बोर्ड से एफिलिएटेड स्कूलों की किताबों की सूची देखी जाए तो उनमें एनसीईआरटी की इक्का-दुक्का किताबें ही है, जबकि बाकी सभी किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी का दूसरा मामला ये है कि सीबीएसई इस साल कक्षा चौथी, पांचवीं, सातवीं, आठवीं का सिलेबस बदल रहा है। इसका सर्कुलर भी जारी किया गया है। मगर, स्कूलों के दबाव में पेरेंट्स को पुराने सिलेबस की किताबें खरीदने पर मजबूर होना पड़ा है। इससे यह तो तय है कि इस बार पेरेंट्स को नए सिलेबस के मुताबिक जून में दोबारा किताबें खरीदनी पड़ेंगी।
मौखिक बताई जा रही दुकान
बीएचईएल के प्राइवेट स्कूल में 8वीं की स्टूडेंट है। वह किताबें खरीदने बुक शॉप पर आए थे। उनसे सेे पूछा- स्कूल ने क्या इसी दुकान से किताबें खरीदने के लिए कहा है? तो बोले- हां। स्कूल की तरफ से बुक्स की लिस्ट दी गई है। लिस्ट में दुकान का नाम तो नहीं लिखा है, मगर मौखिक रूप से बताया गया था। मैं पहले पूरा सेट खरीद चुका हूं, केवल तीन किताबें बाकी थीं। जिनकी कीमत 1 हजार रुपए है। ये प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें हैं और महंगी हैं। एनसीईआरटी की किताबें इनके मुकाबले सस्ती हैं। दुकानदार एनसीईआरटी की किताबों पर 10 फीसदी डिस्काउंट भी दे रहे हैं। मगर, प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों पर कोई डिस्काउंट नहीं है। इसी तरह से एक अन्य अभिभावक का कहना है कि उनके दो बच्चे हैं। उनके लिए किताबें लेने आए हैं। किताबें काफी महंगी हैं, इसलिए मैंने कुछ किताबें पहले से पासआउट हो चुके बच्चों से ली हैं। हालांकि, कुछ किताबें मुझे अब भी खुद खरीदनी पड़ेंगी। उन्होंने कहा कि इन किताबों पर 18 फीसदी जीएसटी भी लगाया गया है। इसके बाद पब्लिशर्स और दुकानदार का कमीशन अलग है। किताबों की कीमत तो हर साल बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि सरकार ने एनसीईआरटी की किताबों को लागू करने के निर्देश दिए। सीबीएसई ने पिछले साल 12 अगस्त को पुस्तकों के इस्तेमाल को लेकर नियम में संशोधन किए हैं। जिनमें पहली से आठवीं और 9 से 12वीं तक एनसीईआरटी की पुस्तकों का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं। भोपाल के पांच स्कूलों के पहली से आठवीं तक के सिलेबस की पड़ताल की तो पता चला कि स्कूलों ने आधे-अधूरे तरीके से इस आदेश को लागू किया है। कई स्कूलों में कुछ विषयों में ही एनसीईआरटी की किताबें लागू की गई हैं, बाकी विषयों के लिए प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों को लागू किया गया है। अगर, सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल की बात की जाए तो 5 विषयों की किताबें एनसीईआरटी की हैं। बाकी विषयों की किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं। पहली और दूसरी क्लास में तो एनसीईआरटी की एक भी किताब नहीं है। सभी किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं। एक किताब की कीमत 100 रुपए से 600 रुपए तक है। वहीं, तीसरी से पांचवीं तक केवल हिंदी विषय की एनसीईआरटी की किताब है, जिसकी कीमत करीब 65 रुपए है। कक्षा 6वीं से 8वीं तक हिंदी, संस्कृत, गणित और विज्ञान की किताबें ही एनसीईआरटी की हैं। बाकी 14 किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं। इसी तरह से सेंट जोसेफ कॉन्वेंट को-एड स्कूल में पहली और दूसरी क्लास में एनसीईआरटी की कोई किताब लागू नहीं है। पालक महासंघ बोला- प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा
पालक महासंघ के उपाध्यक्ष प्रबोध पांड्या ने कहा- सरकार ने एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य की हैं। इसके बाद भी निजी स्कूल इस निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं। पांड्या का ये भी कहना है कि सीबीएसई ने 26 मार्च 2025 को एक सर्कुलर जारी कर कहा है कि कक्षा 4, 5, 7 और 8 के लिए नई किताबें जारी होंगी।
डीईओ बोले- कार्रवाई के लिए टीम गठित की
भोपाल कलेक्टर ने 8 अप्रैल को एक आदेश जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि अगर किसी निजी स्कूल ने अभिभावकों पर किताबें या यूनिफॉर्म किसी खास दुकान से खरीदने का दबाव डाला, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए प्रशासन की ओर से 8 निरीक्षण दल बनाए गए हैं। हर टीम में चार सदस्य तहसीलदार, बीईओ और सरकारी स्कूलों के प्राचार्य रहेंगे।