अटारी-वाघा सीमा पर अफ़रा-तफ़री के बीच भारतीय सीमा में फंसे रह गए कथित पाकिस्तानी नागरिक

पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद देश छोड़ने वाले पाकिस्तानी नागरिकों के लिए उस समय अजीब स्थिति पेश आई जब गुरुवार को अटारी-वाघा बॉर्डर पर करीब 40 पाकिस्तानी भारतीय सीमा में फंसे रह गए. गुरुवार को न तो कोई भारतीय नागरिक सीमा पार करके लौटा और न ही पाकिस्तानी नागरिक सीमा पार गया.

श्रीनगर: अटारी-वाघा बॉर्डर पर गुरुवार (1 मई) को उस समय नाटकीय दृश्य देखने को मिला, जब करीब 40 पाकिस्तानी नागरिक भारतीय सीमा में फंसे रह गए. इनमें से कुछ को कथित तौर पर बिना वैध दस्तावेजों के जम्मू-कश्मीर से लाया गया था.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुरुवार को न तो कोई भारतीय नागरिक सीमा पार करके लौटा और न ही कोई पाकिस्तानी नागरिक सीमा पार करके दूसरी तरफ गया.

इन फंसे हुए लोगों में 16 पाकिस्तानी हिंदुओं का एक समूह भी शामिल था, जो हरिद्वार गए थे. इसके साथ ही राजौरी की दो ऐसी महिलाएं थीं, जो 1983 से भारत में रह रही थीं. यहां कराची की एक महिला भी थीं, जो अपने बच्चे से अलग हो गई हैं, जिसके पास भारतीय पासपोर्ट है.

समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा साझा किए गए 77 सेकेंड के वीडियो में पुरुषों का एक समूह अपने मोबाइल फोन से दो परेशान पाकिस्तानी महिलाओं का वीडियो बनाते हुए दिखाई दे रहा है, जिनमें से एक महिला गुरुवार को अटारी-वाघा सीमा पर गोद में एक बच्चे को लिए हुए खड़ी हैं.

इस वीडियो में दिखाई दे रही दोनों महिलाएं परेशान लग रही थीं. इसके बैकग्राउंड में बंद सीमा क्रॉसिंग दिखाई दे रही थी, जहां आम तौर पर चहल-पहल रहती है. अब वहां एक सुनसान सा माहौल था. वीडियो में एक महिला, जो अपने साथ बच्चा लिए हुए थीं, ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक जवान से बहस करते हुए कहा, ‘हम छह बजे आए हैं.’

बीएसएफ के जवान ने जवाब दिया, ‘आपको तब आना चाहिए था, जब सरकार ने आपको बताया था. मैं आपकी मदद नहीं कर सकता.’ इस दौरान दोनों महिलाएं उससे आग्रह करती रहीं कि उन्हें पाकिस्तान जाने दिया जाए.

वहीं, इसमें ये भी दिखाई देता है कि कुछ अन्य बीएसएफ कर्मियों ने घटना का वीडियो बना रहे लोगों से वापस जाने को कहा.

मालूम हो कि गृह मंत्रालय ने अपने उस नोटिस, जिसमें 1 मई को सीमा बंद करने का आह्वान किया गया था, में संशोधन किया था ताकि पाकिस्तानी नागरिकों को अगले नोटिस तक देश छोड़ने की अनुमति दी जा सके.

हालांकि, गुरुवार को पाकिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति न पाने वालों का भाग्य और डिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहे पाकिस्तानी नागरिकों की सही संख्या अनिश्चित बनी हुई है.

सीमाओं को बंद करना और वीजा सेवाओं का निलंबन

ज्ञात हो कि दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों द्वारा उठाए गए प्रतिशोधात्मक कदमों में अपनी सीमाओं को बंद करना और वीजा सेवाओं को निलंबित करना शामिल था.

22 अप्रैल को हुए इस हमले में 26 नागरिक मारे गए थे, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे. इसके बाद पर्यटक, चिकित्सा या अन्य वीजा पर देश में आए पाकिस्तानी नागरिकों को हमले के बाद गृह मंत्रालय ने बाहर जाने का आदेश दिया था. हालांकि, मंत्रालय ने लंबी अवधि के परमिट वाले पाकिस्तानी नागरिकों को देश में रहने की अनुमति दी थी.

इसी बीच, बुधवार (30 अप्रैल) को 1980 के दशक से कश्मीर में रह रहे एक कथित पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल वहीद भट की डिपोर्ट प्रक्रिया के दौरान बस में मौत हो गई. बताया गया है कि वे लकवाग्रस्त थे.

इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि भट 60 से 70 कथित पाकिस्तानी नागरिकों के समूह का हिस्सा था, जिन्हें डिपोर्ट के लिए जम्मू-कश्मीर से पंजाब लाया गया था. उन्हें 25 अप्रैल को श्रीनगर में विदेशी पंजीकरण कार्यालय द्वारा ‘भारत छोड़ने का नोटिस’ दिया गया था और डिपोर्ट प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई.

इस घटना के बाद यह तत्काल पता नहीं चल पाया कि उन्हें कहां दफनाया जाएगा.

अखबार ने बताया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस कुछ लोगों को बिना पासपोर्ट या दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास से जरूरी प्रमाण-पत्र के निर्वासन के लिए लाई थी.

अखबार ने एक सूत्र के हवाले से कहा, ‘हम उन लोगों को निर्वासित नहीं कर सकते, जिनके पास इनमें से कोई भी नहीं है. यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि भट के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट था या नहीं.’

जम्मू-कश्मीर में फैली उदासी

जम्मू-कश्मीर से कथित पाकिस्तानी नागरिकों के निर्वासन ने जम्मू-कश्मीर में दुख देखने को मिल रहा है.

हाल ही में विवाहित एक कश्मीरी दुल्हन उन लोगों में शामिल थी, जिन्हें डिपोर्ट करने के लिए वाघा लाया गया. उनके पति आमिर अहमद ने इस दुख को बयां करते हुए कहा, ‘मेरी खुशियां मातम में बदल गई हैं. मेरी मां लगातार रो रही है. कल ही मेरी पत्नी अपने नए घर में आई थी और अब उसे वापस भेजा जा रहा है. इसमें हमारी क्या गलती है?’

ख़बरों के अनुसार, बुधवार को 125 पाकिस्तानी नागरिक पाकिस्तान गए, जिससे पिछले गुरुवार, जब सीमा को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया, से अब तक ऐसे लोगों की कुल संख्या 700 से अधिक हो गई है.

गौरतलब है कि मंगलवार को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने पुंछ निवासी जम्मू-कश्मीर पुलिस कॉन्स्टेबल इफ्तखान अली और उनके आठ भाई-बहनों के डिपोर्ट पर रोक लगाते हुए फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश छोड़ने के लिए न कहा जाए और न ही मजबूर किया जाए, क्योंकि प्रथमदृष्टया दिखता है कि वे पाकिस्तानी नागरिक नहीं हैं.