मप्र के सरकारी अस्पतालों में सेहत से खिलवाड़

जांच रिपोर्ट आने से पहले बांटी जा रही दवाइयां.

मप्र के सरकारी अस्पतालों में उपचार कराने से पहले सतर्क हो जाएं। यहां मुफ्त मिलने वाली दवाएं आपकी सेहत सुधारने की जगह और बिगाड़ सकती हैं। निजी कंपनियां चंद फायदे के लिए आमनक दवाएं सप्लाई कर रही हैं। वहीं अस्पताल लैब की जांच रिपोर्ट आने से पहले ही दवाओं को बांट दे रहे हैं। प्रदेशभर में इस तरह सरकारी अस्पतालों में लोगों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है। मप्र में स्वास्थ्य विभाग में दवाओं की खरीदी में हो रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए 2013-14 में तमिलनाडु राज्य की तरह दवा खरीदी के लिए मप्र मे हेल्थ सर्विसेज कारपोरेशन बनाया गया था, लेकिन यह प्रयोग भी मप्र में सफल नहीं रहा है। मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कारपोरेशन बना तो मप्र में गुणवत्तायुक्त दवाइयों को उपलब्ध कराने के लिए है, किंतु उसकी कार्यप्रणाली दवा माफिया को फायदा पहुंचाती है। हेल्थ कारपोरेशन की वेबसाइट पर 61 से ज्यादा दवाइयां ब्लैक लिस्टेड की गई हैं। इनमें से कई दवाइयां जीवनरक्षक हैं, जिनका गलत सेवन जानलेवा भी हो सकता है। पिछले साल इंदौर के महू और इसी मार्च में रीवा के सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को दिए गए इंजेक्शन के रिएक्शन की घटना ने प्रदेश को झकझोर दिया था।
अमानक इंजेक्शन से जा चुकी है 5 महिलाओं की याददाश्त

मप्र हेल्थ सर्विसेज कारपोरेशन की खरीदी से लेकर आपूर्ति तक की प्रक्रिया अजब गजब है। रीवा में जिस इंजेक्शन के लगाने से 5 गर्भवती महिलाओं की याददाश्त चली गई थी,उस कंपनी के टेंडर से लेकर खरीदी और जांच तक प्रक्रिया की बारीकी से पड़ताल से यह सच निकलकर आया कि मप्र के गरीब मरीजों के साथ किस तरह से खिलवाड़ कर रहा है। रीवा में रेडियंट पेरेटरियल्स इंजेक्शन बूपीवेन इंजेक्शन लगाया गया। कंपनी के टेंडर से लेकर खरीदी, आपूर्ति और लैब जांच की कहानी सच बयां करती है। रेडियंट कंपनी को कारपोरेशन से बूपिवाइन इंजेक्शन का टेंडर 14 जुलाई 2023 को मिला बूपिवाइन इंजेक्शन को कंपनी ने जुलाई 2024 के बाद सप्लाई किया। इंजेक्शन के एक बैच में उत्पादन की तारीख जून 2024 और एक्सपायरी डेट मई 2026 थी। और दूसरे बैच में एक बैच में उत्पादन की तारीख सितंबर 2024 और एक्सपायरी डेट अगस्त 2026 थी। बूपिवाइन इंजेक्शन जुलाई के बाद सप्लाई होने के बाद दोनों बैच के एक-एक सेंपल एनएबीएल लैब को भेजे गए। 26 दिसंबर 2024 को सेंपल की जांच रिपोर्ट क्रमांक कोलकाता की एनएबीएल लैब से क्रमांक 2024-25/1426 से क्वालिटी रिपोर्ट भेजी गई, जिसमें इंजेक्शन को गुणवत्ताहीन पाया गया। 21 जनवरी 2025 को हेल्थ कारपोरेशन ने रेडियंट कंपनी को सैंपल फेल होने का कारण बताते हुए नोटिस जारी किया। 28 जनवरी 2025 को रेडियंट कंपनी की तरफ से कारण बताओ नोटिस का जवाब भेजा गया। 11 फरवरी 2025 को रेडियंट कंपनी के इंजेक्शन को 2 साल के लिए ब्लैक लिस्ट किया गया।
कारपोरेशन में नियम स्पष्ट नहीं
तमिलनाडु हेल्थ कारपोरेशन के नियम स्प्ष्ट और जनहितैषी हैं। कारपोरेशन की वेबसाइट में क्वालिटी एश्योरेंस के दूसरे से लेकर पांचवें क्रम में स्पष्ट है कि दवा आपूर्ति होने के बाद उसके प्रत्येक बैच से सैंपल (कंपनी और कंटेंट) मिटाकर एनएबीएल लैब में भेजा जाएगा और वहां से जांच में क्वालिटी उपयुक्त होने की रिपोर्ट मिलने के बाद ही दवा की आपूर्ति मरीजों को की जाएगी। जबकि मप्र में न तो स्पष्ट नियम है और न ही इस तरह की सख्ती की जाती है। वहीं मप्र में ऐसा नहीं है। मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कारपोरेशन खुद मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इसका सबूत है कारपोरेशन द्वारा अपनाई रही पूरी प्रक्रिया है, जिसमें मरीजों की जान की कोई कीमत नहीं है। मौजूद दस्तावेज कारपोरेशन की कारस्तानी का बयां कर रहे हैं। कारपोरेशन ने जिस रेडियंट पेरिटरियल्स कंपनी के इंजेक्शन के गुणवत्ताहीन होने पर ब्लैक लिस्ट किया है। उसके आर्डर में कारपोरेशन का काला सच लिखा है। रेडियंट पेरेंटरियल्स को भेजे नोटिस में कारपोरेशन ने क्वालिटी फेल होने की दशा में कंपनी के अकाउंट से कटौती और कंपनी के पेनाल्टी कंडिका के 19.2 खंड का उल्लेख किया है। जिसमें लिखा है कि यदि कंपनी द्वारा सप्लाई की गई दवाई आंशिक अथवा पूरी तरह से उपभोग कर ली जाती है और यदि वह दवाई किसी भी तरह से अमानक पाई जाती है तो ऐसी दवाई की अनुबंधित कीमत सप्लायर से वसूली जाएगी और यदि दवाई का भुगतान किया जा चुका है, तो अनुबंध के आधार पर उससे वसूली की जाएगी। और जो दवाएं अमानक निकली हैं, उसके भुगतान का सप्लायर अधिकारी नहीं होगा। कारपोरेशन द्वारा ब्लैक लिस्टेड करने के लिए भेजे गया नोटिस साफ दर्शाता है कि सरकारी अस्पतालों में दवाइयां पहुंचने के बाद एनएबीएल लैब से दवा के बैच के सैंपल की जांच कराई जाती है, लेकिन जांच होने तक दवाई के वितरण को लेकर किसी तरह का कोई आदेश नहीं है। इसकी पुष्टि कारपोरेशन का नोटिस भी बयां करता है कि जिसमें उपभोग हो जाने की बात लिखी है। दरअसल, कारपोरेशन का फोकस दवा के अमानक निकलने पर कंपनी पर पेनाल्टी और भुगतान हो जाने की स्थिति में भरपाई पर है।
घातक साबित होंगी आमनक दवाएं
मप्र सरकारी अस्पतालों में गुणवत्ताहीन दवाओं की सप्लाई कोई नई बात नहीं है। इस तरह के कई लॉट सामने आ चुके हैं। यह स्थिति तब है जब स्वास्थ्य विभाग के लिए दवा और उपकरण खरीदने के लिए सरकार ने हेल्थ कारपोरेशन तो बना दिया, लेकिन नियम वही घिसे पिटे हैं, जिसका फायदा उठाकर दवा माफिया मप्र में अमानक दवाइयां बनाकर खपाने में लगे हैं। यही कारण है कि जब तक मप्र पब्लिक हेल्थ कारपोरेशन के पास दवाइयों की जांच रिपोर्ट पहुंचती है तब तक बड़ी संख्या में अमानक दवाई मरीजों के पेट तक पहुंच जाती है। दरअसल, कारपोरेशन की नीति और नियम ऐसे हैं कि अमानक दवाओं का सरकारी व्यापार पर कभी अंकुश नहीं लगेगा। इसकी वजह मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कारपोरेशन का खरीदी से लेकर आपूर्ति और जांच की प्रक्रिया है, जो दवा माफिया के अनुकूल है, जबकि तमिलनाडु जहां का दवा खरीदी मॉडल मप्र में अपनाया गया है, वहां ज्यादा पुख्ता नियम हैं।