प्रदेश के 10 आदिवासी बाहुल जिलों के लिए हाल ही में अच्छी खबर आयी है। यह वे इलाके हैं जहां पर फसल के रूप में कोदो व कुटकी का वृहद रूप से उत्पादन होता है। दरअसल हाल ही में एक रिसर्च सामने आयी है जिसमें पता चला है कि कोदो-कुटकी जैसे अनाज का उपयोग इडली, डोसा, सांभर, बड़ा, केक, बिस्किट आदि का निर्माण किया जा सकता है। यह रिसर्च राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान हरियाणा (निपटेम) द्वारा की गई है। खास बात यह है कि इस दौरान पाया गया कि इन अनाजों से तैयार की जाने वाली खाद्य सामग्री में भरपूर मात्रा में खाद्य सामग्री में प्रोटीन न्यूट्रीशन सहित अन्य पोषक तत्व की मात्रा भरपूर रहती है। इस सबंध में दो साल तक की गई खोज के बाद हाल ही में निपटेम ने राज्य सरकार को प्राथमिक रिपोर्ट सौंपी है। जिसके बाद सभी आदिवासी छात्रावासों के भोजन में कोदो-कुटकी अनिवार्य कर दिया है। इस सबंध में अफसरों को कहना है कि आदिवासी महिलाओं के स्व सहायता समूहों को सरकारी योजनाओं से लोन दिलवाकर फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएगी ताकि कोदो-कुटकी से सामग्री बनाई जा सके।
कुपोषण में है काफी लाभकारी
निपटेम ने कोदो कुटकी से बनने वाली रेसिपी के सैंपल और विधि राज्य सरकार को सौंपी है। निपटेम प्रबंधन का कहना है कि यह सभी खाद्य पदार्थ यदि कोदो कुटकी से बनाए जाते हैं तो कई गुना अधिक न्यूट्रीशन मिलेगा। यह बच्चों विशेषकर कुपोषित बच्चों के लिए बेहद लाभकारी होता है। कोदो कुटकी की प्रोसेस होने के बाद इसका स्वाद भी बदल जाता है।
इन दस जिलों में होती है अधिक पैदावार
मंडला, छिंदवाड़ा, डिंडौरी, सिंगरौली, सिवनी, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, बालाघाट, जबलपुर जिलों में कोदो कुटकी की अधिक पैदावार हो रही है। यह सभी आदिवासी बाहुल जिले हैं। कोदो कुटकी की पैदावार में न्यूनतम फॢटलाइजर का उपयोग होता है लेकिन यहां के आदिवासी किसानों को इसके सही दाम नहीं मिल पाते हैं।